शनिवार, मार्च 20, 2010

जीने का नया अंदाज देते हैं भारतीय काल पर्व

फोटो-मदन मेहरोत्रा
(वाराणसी में शंकराचार्य घाट पर हिंदू नववर्ष की शुरुआत पर उगते सूरज को नमस्कार करते नन्हें बटुक)


 
मंगलवार (16 मार्च) सुबह मोबाइल फोन की बेल से नींद खुली. मोबाइल फोन उठा कर देखा तो एक एसएमएस दिखा 'नव वर्ष और नवरात्र की ढेर सारी बधाईÓ लास्ट में मेरे एक शुभचिंतक का नाम था. मैसेज पढऩे के बाद मैं दोबारा सो गया. नींद पूरी कर जब उठा तब तक कई और मैसेज आ चुके थे. फ्रेश होकर ऑफिस पहुंचा. मीटिंग निपटाई. फिर ख्याल आया कि यह मैसेज न होता और कुछ पॉलिटिकल पार्टीज न होती तो हिंदू नवसंवत्सर को याद करने वाला कौन था. हम हिंदुस्तानी अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं. फिर मुझे याद आया कि हिंदुस्तानी नव संवत्सर से रिलेटेड एक आर्टिकल मैंने एक न्यूज पेपर में पढ़ा था. जिसे मैंने कटिंग कर सालों पहले संजो कर रख लिया था. इसे सबके साथ शेयर करने के लिए ब्लॉग से बेहतरीन साधन मुझे कोई और नहीं लगा. इसीलिए मैंने अपने नए ब्लॉग जिस पर मैंने अभी तक कोई पोस्टिंग नहीं की थी. इस आर्टिकल को पब्लिश करने का फैसला किया.



जीने का नया अंदाज देते हैं भारतीय काल पर्व

भारतीय मन उत्सव प्रेमी है और भारतीय संस्कृति ने प्रत्येक महीने के हर दिन को किसी न किसी पर्व या उत्सव के रूप में मान्यता दी है. तेज दौड़ते युग में लोग भूल ही गए हैं कि हिंदू मान्यता के अनुसार नया वर्ष 16 मार्च से शुरू हो रहा है. विज्ञान तकनीक महत्वाकांक्षा और जहां सफलता ही अंतिम लक्ष्य माना गया हो, ऐसे आज के दौर में कालगणना का आधार सिर्फ अंग्रेजी महीने ही रह गए हैं. कैलेंडर का अर्थ सिर्फ डेट देखना नही है. लेकिन कालचक्र को जब भारतीय माह गणना से देखें तो तिथियां जीवंत हो उठेंगी और हर महीना अपने खास मकसद को बताता नजर आएगा.


भारतीय मास से जुड़े हुए पर्वों के पीछे अपने निश्चित उद्देश्य हैं. इनका जो वैज्ञानिक आधार है वहां हमारे जनजीवन को प्रभावित करता है. यही कारण है कि सैकड़ों वर्षों की गुलामी दमन, विपरीत हालात और आधुनिकता के थपेड़ों के बावजूद भारतीय संस्कृति के कालपर्व अपना उद्देश्य और रूप बनाए हुए हैं.


वर्ष प्रतिपदा, चैत्र शुक्ल एकम से हिंदू नववर्ष का आरंभ मानते हैं. इस दिन से विक्रम संवत 2067 शुरू हो जाएगा. शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना का काम इसी दिन शुरू किया था. इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी. कालचक्र भारतीय परंपरा के अनुसार 12 माह में बंटा है. चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीष, पौष, माघ और फाल्गुन. हम भारतीय अपने पर्वों को दो उद्देश्य से मनाते हैं. पहला उद्देश्य है कि कोई संकल्प लेकर भविष्य के लिए प्रार्थना करना जैसे प्रतिपदा और दूसरा उद्देश्य संकल्पपूर्ति या अभीष्ट सिद्ध होने पर परमात्मा प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना. जैसे विजयादशमी आदि.


हमारे ऋषि मुनियों ने समय को वर्ष माह पक्ष सप्ताह दिन और मुहुर्त में बांटकर मौसम के प्रभावनुसार हमारी दिनचर्या तय कर एक सुरक्षित और आनंदमयी जीवन पद्धति बनाई है. इसलिए चैत्र से लेकर फाल्गुन तक 12 महीनों का जहां अपना विशेष महत्व है. वहीं इन महीनों में आने वाले व्रत त्यौहारों का भी अपना विशेष स्थान है. 31 दिसंबर की आधी रात को जिस पुराने साल को हम विदा करते हैँ धूमधड़ाके से हैप्पी न्यू इयर मना लेते हैं. उससे कुछ अलग हटकर प्रतिपदा के इस नववर्ष पर इन बातों पर भी विचार किया जा सकता है. यह नया वर्ष अर्थात नए संकल्प लेने का पर्व है प्रतिपदा पर लिए गए संकल्प हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने लक्ष्य को पहचानने और पाने लिए मार्ग तय करें. यह भारतीय संस्कृति ही है, जो वसुधैव कुटुंबकम का स्पष्ट संदेश देती है. हमने निज से हटकर सबके लिए सुखी होने की प्रार्थना की है. यह हिंदू मन का मूल भाव है. इसीलिए हिंदू नववर्ष के पहले दिन इसे संकल्प के रूप में ग्रहण कर और दृढ़ किया जाए. सब सुखी और स्वस्थ रहें. विश्व में यह प्रार्थना भारत से ही उठी है. भारतीय पद्धति के बारह महीनों में यह संदेश व्यक्त है कि प्राणी और प्रकृति के साथ एकत्व और तादात्मय की अनुभूति करना चाहिए.


इस नववर्ष के पहले दिन हम भलाई के लिए संकल्पित हों. भलाई का आधार प्रेम है. भलाई का भाव केवल मनुष्यों तक सीमित न रहे. यह प्रकृति के प्रति भी हो, हमारे त्योहार हरियाली तीज और नाग पंचमी इसी के लिए हैं. पर्यावरण के दो मुख्य केंद्र वृक्ष और वन्य प्राणी हैं. हमारा हर पर्व कहता है उनकी रक्षा करें. दूसरा संकल्प है कृपा. ईश्वर को कृपालु कहा जाता है. जैसे भगवान हम पर कृपा बरसाते हैं. इसी तरह हम दूसरों पर कृपा करें. तीसरा संकल्प दया जो धर्म का मूल है. दया की भावना हमें संवेदनशील बनाएगी चौथा संकल्प कल्याण की कामना है. अत: इस नए साल के आरंभ में भारतीय महीनों की प्रकृति संदेश और पर्वों को समझकर जीवन में एक नया ढंग स्वयं में पैदा करें. यह बारह मास भारतीय संस्कृति को विश्व संस्कृति बनने में मदद करते हैं.


साभार-पं.विजय शंकर मेहता