गुरुवार, जून 03, 2010

घाटों से दूर हो रही है गंगा

Holy GANGA in VARANASI
                                               दशाश्वमेघ घाट


अस्सी घाट पर मौजूदा डेप्थ : करीब 6 मीटर

20 साल पहले यहां डेप्थ था : करीब 9 मीटर

                         पंचगंगा घाट पर मौजूदा डेप्थ : करीब 17.5 मीटर

                          20 साल पहले यहां डेप्थ था : करीब 23 मीटर

                          गंगा में करेंट फ्लो : करीब 2 से 3 सेमी/ सेकेण्ड
   
                         20 साल पहले फ्लो : करीब 6 सेमी/ सेकेण्ड

सोमवार, मई 17, 2010

Railway enquiry

Railway enquiry without premium charge

PNR व ट्रेनों का स्टेटस जानने के लिए जारी हुआ नया mobile number 9773300000

Railway-Google के बीच हुआ agreement

Tarrif  के हिसाब से लगेगा SMS charge

ट्रेनों का पोजिशन तथा पीएनआर स्टेटस पता करना अब और आसान हो गया है. रेलवे इंक्वॉयरी नंबर 139 से जानकारी लेने के लिए पैसेंजर्स को जहां पहले एसएमएस व कॉल करने पर ज्यादा खर्च करने पड़ते थे. वहीं अब उन्हें अपने मोबाइल के टैरिफ के हिसाब से ही चार्ज देना होगा. अब रेलवे ने सर्च इंजन गूगल के साथ एग्रीमेंट करके एक नया मोबाइल नंबर जारी किया है. जिस पर बिना प्रीमियम चार्ज के ही पैसेंजर्स पीएनआर, सीट की अवेलेबिलिटी व ट्रेनों की पोजिशन पता कर सकेंगे. रेलवे ने मोबाइल नंबर 9773300000  जारी करने के साथ ही यह सर्विस शुरू कर दी है.


पिछले साल सितंबर में रेलवे ने अपनी सभी लोकल इंक्वॉयरी सर्विस को बंद करके 139  सर्विस शुरू किया था लेकिन इस पर सही जानकारी न मिलने की लगातार कंप्लेंट हो रही थी. इसके अलावा कॉल रेट 1 से 3 रुपये प्रति मिनट भी देना पड़ रहा था. इसी तरह एसएमएस के रेट्स भी महंगे थे. इससे पैसेंजर्स को केवल पीएनआर या फिर ट्रेनों की लोकेशन पता करने में ही 10 से 15 रुपये खर्च हो जाते थे. इसको देखते हुए ही रेलवे ने इसके पैरलल एक और सर्विस शुरू की है. यह सर्विस गूगल के साथ किए गए एग्रीमेंट के तहत मिल रही है.


नये मोबाइल नंबर 9773300000  पर एसएमएस कर ट्रेन व रिजर्वेशन से संबंधित हर जानकारी ली जा सकती है. इसकी खास बात यह है कि इससे जानकारी लेने पर प्रीमियम चार्ज नहीं देना पड़ता है. पैसेंजर्स जिस भी कंपनी का मोबाइल यूज करता है और उसमें जो एसएमएस टैरिफ एक्टिवेट करा रखा है उसी के अनुसार चार्ज कटेगा. यह चार्ज अलग-अलग हो सकता है. अपने मोबाइल के एसएमएस बाक्स में पीएनआर नंबर को टाइप करने के बाद 9773300000 पर भेज दें. कुछ देर बाद इंक्वॉयरी से संबंधित एसएमएस आपके मोबाइल स्क्रीन पर दिखने लगेगा. .

शनिवार, अप्रैल 10, 2010

बीमारी से हो रही फिल्में हिट



पत्रकारिता में एक कहावत बहुत प्रचलित है 'न्यूज और डेडबॉडी को कभी रोकना चाहिए. रोकने पर यह दोनों ही बदबू मारने लगती हैं.Ó अचानक यह कहावत क्यों याद आ गई. तो आइये आपको बता ही देते हैं.


...शायद 10 जनवरी 2010 ही था. ऑफिस में मीटिंग निपटाने और स्टोरी लिस्ट फाइनल करने के बाद अखबार पलट रहा था. सामने टीवी चल रहा था. अचानक टीवी पर नजर चली गई एक न्यूज चैनल पर माई नेम इज खान का प्रोमो दिखाया जा रहा था. जिज्ञासावश उसे देखने लगा. क्योंकि मुझे जहां तक पता था यह फिल्म शाहरुख खान ने उसी एयरपोर्ट कंट्रोवर्सी को ध्यान में रखकर बनाई थी, जिसमें उन्हें अमेरिका के न्यू जर्सी में नाम के आगे 'खानÓ लगा होने के कारण रोक लिया गया था और काफी देर तक पूछताछ की गई थी. प्रोमो चल ही रहा था कि एंकर ने बताया इस फिल्म में शाहरूख खान एक ऐसे मुस्लिम युवक की भूमिका निभा रहें हैं, जो 'एस्पर्जर सिंड्रोमÓ नाम की बीमारी से ग्रस्त है. जो बीमारी के साथ ही एक ऐसी बीमारी से लड़ते हैं जो वल्र्ड में 'टेरेरिज्मÓ के नाम से जानी जाती है.

शाहरूख को एस्पर्जर सिंड्रोम. अचानक दिमाग में कौंधा, एक और फिल्म जिसमें हीरो को बीमारी से ग्रस्त दिखाया गया है. तो क्या बीमारियों पर आधारित फिल्में बनाने का ट्रेंड शुरू हो गया है. दिमाग पर जोर डाला तो गजनी, तारे जमीं पर, तेरे नाम और आनंद फिल्में याद आ गई. मैंने तुरंत अपने एक रिपोर्टर को इसी थीम पर स्टोरी करने के लिए कहा. किन्हीं कारणों से वह रिपोर्टर यह स्टोरी नहीं कर पाया. इस दौरान लगभग एक सप्ताह गुजर गया. इसी दौरान मैं पूरे सप्ताह की खबरों की प्लानिंग की समीक्षा कर रहा था. अचानक याद आया कि अरे यार ये स्टोरी तो हो ही नहीं पाई. इस पर मैंने बीमारियों पर आधारित फिल्मों पर स्टोरी खुद करने का मन बना लिया. कम्प्यूटर पर बैठा ही था, इसलिए इंटरनेट पर ऐसी फिल्मों की डिटेल ढूंढने लगा. आधे घंटे में स्टोरी लायक मैटर नेट खंगाल कर निकाल लिया था. बस रह गया था, इस स्टोरी को शब्दों में पिरोना. मैंने सोचा इसे आज नहीं कल लिखुंगा. आज कुछ ज्यादा प्रेशर है. लेकिन वह कल नहीं आया. क्योंकि अगली सुबह जब सोकर उठा तो 'आई नेक्स्टÓ के 19 जनवरी के एडिशन के 'आई व्यूÓ पेज पर एक फ्रीलांसर राइटर का राइट अप 'ये मर्ज कुछ खास हैÓ देखकर मूड खराब हो गया. जानते हैं क्यों यह राइट अप उसी टॉपिक पर था, जिसे मैंने 10 दिन पहले प्लान किया था. तो अब तो आप समझ गए होंगे कि 'न्यूज और डेडबॉडी को क्यों नहीं रोकना चाहिएÓ.



बीमारी से हो रही फिल्में हिट

'बाबू मोशाय जिंदगी और मौत ऊपरवाले के हाथ है, जिसे न आप बदल सकते हैं ना मैं. हम सब तो रंगमंच की कठपुतली हैं. जिसकी डोर उस ऊपर वाले के हाथों में हैं. कब, कौन, कहां उठेगा ये कोई नहीं जानताÓ - आनंद फिल्म के इस सदाबहार डायलॉग को शायद ही कोई भूल सकता हो (जिसने फिल्म देखी हो). ऋषिकेश मुखर्जी की इस फिल्म में आनंद सहगल बने राजेश खन्ना को 'लिम्फोसर्कोमा ऑफ द इन्टेस्टाइनÓ बीमारी होती है. 1971 में बनी यह फिल्म जहां तक मुझे याद है बीमारियों पर बनी ऐसी दूसरी फिल्म (पहली फिल्म 1970 में बनी खिलौना थी. जिसमें संजीव कुमार ने पागल का रोल निभाया था) थी. जिसे इतनी लोकप्रियता मिली कि यह उस दौरान सात एवार्ड जीत ले गई.



यह तो हो गई 1970-71 की बात. लेकिन अचानक तारे जमीं पर, गजनी फिर पा और अब माई नेम इज खान फिल्म भी बीमारी पर. तो क्या अब बॉलीवुड में फिल्में हिट कराने का फंडा बीमारी हो गया है. पहले गजनी के आमिर खान को 'एंटीरोग्रेटेड एम्नीसियाÓ नामक बीमारी से ग्रस्त दिखाया गया. पा में अमिताभ बच्चन 'प्रोजेरियाÓ से पीडि़त दिखाए गए. अब माई नेम इज खान में शाहरुख खान को 'स्पर्जर सिंड्रोमÓ परेशान कर रहा है. गजनी, पा और माई नेम इज खान प्योर प्रोफेशनल फिल्में थी. जिसमें न तो निर्माता-निर्देशक और न ही हीरो को बीमारी से कुछ लेना-देना था. उनका मकसद था सिर्फ फिल्म को हिट कराने में किसी अजीबो-गरीब बीमारी का तड़़का लगाना.


लेकिन 2007 में आई तारे जमीं पर फिल्म के साथ ऐसा कुछ नहीं था. यह एक प्रयास था ऑटिज्म पीडि़त बच्चों के मां-बाप को नई दिशा देने का. किस तरह एक बीमारी से पीडि़त बच्चा, जो पढ़ाई से दूर भागता है, उसकी छुपी हुई स्किल को उभारा जा सकता है. आमिर खान ने इस फिल्म से जो संदेश समाज को दिया, वह काबिले तारीफ था. मुझे याद है कई साल पहले लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग में ऑटिज्म पर एक वर्कशॉप हुई थी. इस वर्कशॉप में फरुख शेख आए थे. उन्हें ऑटिज्म के बारे में अवेयर करने वाली एक एनजीओ अपने साथ लाई थी और उन्हें ब्रांड एम्बेस्डर के तौर पर पेश किया गया था. आज फारुख शेख कहां हैं किसी को नहीं पता. लेकिन टीवी पर आ रहे सीरियल आपकी अंतरा और तारे जमी पर फिल्म ने लोगों को जागरूक करने का काम किया है.

तारे जमीं पर की तर्ज पर एक फिल्म 2004 में आई थी 'फिर मिलेंगे.Ó अभिनेत्री रेवती ने यह फिल्म एचआईवी-एड््स को केंद्रित कर बनाई थी. एचआईवी-एड््स से संक्रमित व्यक्ति किस तरह की दुश्वारियों का सामना करता है. इस फिल्म में बखूबी दर्शाया गया था. एचआईवी संक्रमित युवती का रोल निभाया था शिल्पा शेट्टी ने. यह फिल्म भले ही हिट न कही जाए. लेकिन एचआईवी-एड्स संक्रमित लोग किस तरह के स्टिग्मा और डिस्क्रिमिनेशन का सामना कर रहे हैं. यह इस फिल्म को देखकर समझा जा सकता है.



कुछ और बीमारियों वाली फिल्में

ब्लैक -अमिताभ बच्चन एल्जाइमर डिजीज से पीडि़त

मजबूर- अमिताभ बच्चन को टर्मिनल ब्रेन ट्यूमर से पीडि़त दिखया गया

भूलभुलैया - विद्या बालन डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसआर्डर से पीडि़त थीं

स्माइल पिंकी- ऑस्कर विनिंग डॉक्यूमेंट्री, जिसमें क्लेफ्ट लिप पीडि़़त बच्ची की हंसी को दिखाया गया

तेरे नाम- सलमान खान मेमोरी लॉस से पीडि़त दिखाये गए

शनिवार, मार्च 20, 2010

जीने का नया अंदाज देते हैं भारतीय काल पर्व

फोटो-मदन मेहरोत्रा
(वाराणसी में शंकराचार्य घाट पर हिंदू नववर्ष की शुरुआत पर उगते सूरज को नमस्कार करते नन्हें बटुक)


 
मंगलवार (16 मार्च) सुबह मोबाइल फोन की बेल से नींद खुली. मोबाइल फोन उठा कर देखा तो एक एसएमएस दिखा 'नव वर्ष और नवरात्र की ढेर सारी बधाईÓ लास्ट में मेरे एक शुभचिंतक का नाम था. मैसेज पढऩे के बाद मैं दोबारा सो गया. नींद पूरी कर जब उठा तब तक कई और मैसेज आ चुके थे. फ्रेश होकर ऑफिस पहुंचा. मीटिंग निपटाई. फिर ख्याल आया कि यह मैसेज न होता और कुछ पॉलिटिकल पार्टीज न होती तो हिंदू नवसंवत्सर को याद करने वाला कौन था. हम हिंदुस्तानी अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं. फिर मुझे याद आया कि हिंदुस्तानी नव संवत्सर से रिलेटेड एक आर्टिकल मैंने एक न्यूज पेपर में पढ़ा था. जिसे मैंने कटिंग कर सालों पहले संजो कर रख लिया था. इसे सबके साथ शेयर करने के लिए ब्लॉग से बेहतरीन साधन मुझे कोई और नहीं लगा. इसीलिए मैंने अपने नए ब्लॉग जिस पर मैंने अभी तक कोई पोस्टिंग नहीं की थी. इस आर्टिकल को पब्लिश करने का फैसला किया.



जीने का नया अंदाज देते हैं भारतीय काल पर्व

भारतीय मन उत्सव प्रेमी है और भारतीय संस्कृति ने प्रत्येक महीने के हर दिन को किसी न किसी पर्व या उत्सव के रूप में मान्यता दी है. तेज दौड़ते युग में लोग भूल ही गए हैं कि हिंदू मान्यता के अनुसार नया वर्ष 16 मार्च से शुरू हो रहा है. विज्ञान तकनीक महत्वाकांक्षा और जहां सफलता ही अंतिम लक्ष्य माना गया हो, ऐसे आज के दौर में कालगणना का आधार सिर्फ अंग्रेजी महीने ही रह गए हैं. कैलेंडर का अर्थ सिर्फ डेट देखना नही है. लेकिन कालचक्र को जब भारतीय माह गणना से देखें तो तिथियां जीवंत हो उठेंगी और हर महीना अपने खास मकसद को बताता नजर आएगा.


भारतीय मास से जुड़े हुए पर्वों के पीछे अपने निश्चित उद्देश्य हैं. इनका जो वैज्ञानिक आधार है वहां हमारे जनजीवन को प्रभावित करता है. यही कारण है कि सैकड़ों वर्षों की गुलामी दमन, विपरीत हालात और आधुनिकता के थपेड़ों के बावजूद भारतीय संस्कृति के कालपर्व अपना उद्देश्य और रूप बनाए हुए हैं.


वर्ष प्रतिपदा, चैत्र शुक्ल एकम से हिंदू नववर्ष का आरंभ मानते हैं. इस दिन से विक्रम संवत 2067 शुरू हो जाएगा. शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना का काम इसी दिन शुरू किया था. इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी. कालचक्र भारतीय परंपरा के अनुसार 12 माह में बंटा है. चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीष, पौष, माघ और फाल्गुन. हम भारतीय अपने पर्वों को दो उद्देश्य से मनाते हैं. पहला उद्देश्य है कि कोई संकल्प लेकर भविष्य के लिए प्रार्थना करना जैसे प्रतिपदा और दूसरा उद्देश्य संकल्पपूर्ति या अभीष्ट सिद्ध होने पर परमात्मा प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना. जैसे विजयादशमी आदि.


हमारे ऋषि मुनियों ने समय को वर्ष माह पक्ष सप्ताह दिन और मुहुर्त में बांटकर मौसम के प्रभावनुसार हमारी दिनचर्या तय कर एक सुरक्षित और आनंदमयी जीवन पद्धति बनाई है. इसलिए चैत्र से लेकर फाल्गुन तक 12 महीनों का जहां अपना विशेष महत्व है. वहीं इन महीनों में आने वाले व्रत त्यौहारों का भी अपना विशेष स्थान है. 31 दिसंबर की आधी रात को जिस पुराने साल को हम विदा करते हैँ धूमधड़ाके से हैप्पी न्यू इयर मना लेते हैं. उससे कुछ अलग हटकर प्रतिपदा के इस नववर्ष पर इन बातों पर भी विचार किया जा सकता है. यह नया वर्ष अर्थात नए संकल्प लेने का पर्व है प्रतिपदा पर लिए गए संकल्प हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने लक्ष्य को पहचानने और पाने लिए मार्ग तय करें. यह भारतीय संस्कृति ही है, जो वसुधैव कुटुंबकम का स्पष्ट संदेश देती है. हमने निज से हटकर सबके लिए सुखी होने की प्रार्थना की है. यह हिंदू मन का मूल भाव है. इसीलिए हिंदू नववर्ष के पहले दिन इसे संकल्प के रूप में ग्रहण कर और दृढ़ किया जाए. सब सुखी और स्वस्थ रहें. विश्व में यह प्रार्थना भारत से ही उठी है. भारतीय पद्धति के बारह महीनों में यह संदेश व्यक्त है कि प्राणी और प्रकृति के साथ एकत्व और तादात्मय की अनुभूति करना चाहिए.


इस नववर्ष के पहले दिन हम भलाई के लिए संकल्पित हों. भलाई का आधार प्रेम है. भलाई का भाव केवल मनुष्यों तक सीमित न रहे. यह प्रकृति के प्रति भी हो, हमारे त्योहार हरियाली तीज और नाग पंचमी इसी के लिए हैं. पर्यावरण के दो मुख्य केंद्र वृक्ष और वन्य प्राणी हैं. हमारा हर पर्व कहता है उनकी रक्षा करें. दूसरा संकल्प है कृपा. ईश्वर को कृपालु कहा जाता है. जैसे भगवान हम पर कृपा बरसाते हैं. इसी तरह हम दूसरों पर कृपा करें. तीसरा संकल्प दया जो धर्म का मूल है. दया की भावना हमें संवेदनशील बनाएगी चौथा संकल्प कल्याण की कामना है. अत: इस नए साल के आरंभ में भारतीय महीनों की प्रकृति संदेश और पर्वों को समझकर जीवन में एक नया ढंग स्वयं में पैदा करें. यह बारह मास भारतीय संस्कृति को विश्व संस्कृति बनने में मदद करते हैं.


साभार-पं.विजय शंकर मेहता