पत्रकारिता में एक कहावत बहुत प्रचलित है 'न्यूज और डेडबॉडी को कभी रोकना चाहिए. रोकने पर यह दोनों ही बदबू मारने लगती हैं.Ó अचानक यह कहावत क्यों याद आ गई. तो आइये आपको बता ही देते हैं.
...शायद 10 जनवरी 2010 ही था. ऑफिस में मीटिंग निपटाने और स्टोरी लिस्ट फाइनल करने के बाद अखबार पलट रहा था. सामने टीवी चल रहा था. अचानक टीवी पर नजर चली गई एक न्यूज चैनल पर माई नेम इज खान का प्रोमो दिखाया जा रहा था. जिज्ञासावश उसे देखने लगा. क्योंकि मुझे जहां तक पता था यह फिल्म शाहरुख खान ने उसी एयरपोर्ट कंट्रोवर्सी को ध्यान में रखकर बनाई थी, जिसमें उन्हें अमेरिका के न्यू जर्सी में नाम के आगे 'खानÓ लगा होने के कारण रोक लिया गया था और काफी देर तक पूछताछ की गई थी. प्रोमो चल ही रहा था कि एंकर ने बताया इस फिल्म में शाहरूख खान एक ऐसे मुस्लिम युवक की भूमिका निभा रहें हैं, जो 'एस्पर्जर सिंड्रोमÓ नाम की बीमारी से ग्रस्त है. जो बीमारी के साथ ही एक ऐसी बीमारी से लड़ते हैं जो वल्र्ड में 'टेरेरिज्मÓ के नाम से जानी जाती है.
शाहरूख को एस्पर्जर सिंड्रोम. अचानक दिमाग में कौंधा, एक और फिल्म जिसमें हीरो को बीमारी से ग्रस्त दिखाया गया है. तो क्या बीमारियों पर आधारित फिल्में बनाने का ट्रेंड शुरू हो गया है. दिमाग पर जोर डाला तो गजनी, तारे जमीं पर, तेरे नाम और आनंद फिल्में याद आ गई. मैंने तुरंत अपने एक रिपोर्टर को इसी थीम पर स्टोरी करने के लिए कहा. किन्हीं कारणों से वह रिपोर्टर यह स्टोरी नहीं कर पाया. इस दौरान लगभग एक सप्ताह गुजर गया. इसी दौरान मैं पूरे सप्ताह की खबरों की प्लानिंग की समीक्षा कर रहा था. अचानक याद आया कि अरे यार ये स्टोरी तो हो ही नहीं पाई. इस पर मैंने बीमारियों पर आधारित फिल्मों पर स्टोरी खुद करने का मन बना लिया. कम्प्यूटर पर बैठा ही था, इसलिए इंटरनेट पर ऐसी फिल्मों की डिटेल ढूंढने लगा. आधे घंटे में स्टोरी लायक मैटर नेट खंगाल कर निकाल लिया था. बस रह गया था, इस स्टोरी को शब्दों में पिरोना. मैंने सोचा इसे आज नहीं कल लिखुंगा. आज कुछ ज्यादा प्रेशर है. लेकिन वह कल नहीं आया. क्योंकि अगली सुबह जब सोकर उठा तो 'आई नेक्स्टÓ के 19 जनवरी के एडिशन के 'आई व्यूÓ पेज पर एक फ्रीलांसर राइटर का राइट अप 'ये मर्ज कुछ खास हैÓ देखकर मूड खराब हो गया. जानते हैं क्यों यह राइट अप उसी टॉपिक पर था, जिसे मैंने 10 दिन पहले प्लान किया था. तो अब तो आप समझ गए होंगे कि 'न्यूज और डेडबॉडी को क्यों नहीं रोकना चाहिएÓ.
बीमारी से हो रही फिल्में हिट
'बाबू मोशाय जिंदगी और मौत ऊपरवाले के हाथ है, जिसे न आप बदल सकते हैं ना मैं. हम सब तो रंगमंच की कठपुतली हैं. जिसकी डोर उस ऊपर वाले के हाथों में हैं. कब, कौन, कहां उठेगा ये कोई नहीं जानताÓ - आनंद फिल्म के इस सदाबहार डायलॉग को शायद ही कोई भूल सकता हो (जिसने फिल्म देखी हो). ऋषिकेश मुखर्जी की इस फिल्म में आनंद सहगल बने राजेश खन्ना को 'लिम्फोसर्कोमा ऑफ द इन्टेस्टाइनÓ बीमारी होती है. 1971 में बनी यह फिल्म जहां तक मुझे याद है बीमारियों पर बनी ऐसी दूसरी फिल्म (पहली फिल्म 1970 में बनी खिलौना थी. जिसमें संजीव कुमार ने पागल का रोल निभाया था) थी. जिसे इतनी लोकप्रियता मिली कि यह उस दौरान सात एवार्ड जीत ले गई.
यह तो हो गई 1970-71 की बात. लेकिन अचानक तारे जमीं पर, गजनी फिर पा और अब माई नेम इज खान फिल्म भी बीमारी पर. तो क्या अब बॉलीवुड में फिल्में हिट कराने का फंडा बीमारी हो गया है. पहले गजनी के आमिर खान को 'एंटीरोग्रेटेड एम्नीसियाÓ नामक बीमारी से ग्रस्त दिखाया गया. पा में अमिताभ बच्चन 'प्रोजेरियाÓ से पीडि़त दिखाए गए. अब माई नेम इज खान में शाहरुख खान को 'स्पर्जर सिंड्रोमÓ परेशान कर रहा है. गजनी, पा और माई नेम इज खान प्योर प्रोफेशनल फिल्में थी. जिसमें न तो निर्माता-निर्देशक और न ही हीरो को बीमारी से कुछ लेना-देना था. उनका मकसद था सिर्फ फिल्म को हिट कराने में किसी अजीबो-गरीब बीमारी का तड़़का लगाना.
लेकिन 2007 में आई तारे जमीं पर फिल्म के साथ ऐसा कुछ नहीं था. यह एक प्रयास था ऑटिज्म पीडि़त बच्चों के मां-बाप को नई दिशा देने का. किस तरह एक बीमारी से पीडि़त बच्चा, जो पढ़ाई से दूर भागता है, उसकी छुपी हुई स्किल को उभारा जा सकता है. आमिर खान ने इस फिल्म से जो संदेश समाज को दिया, वह काबिले तारीफ था. मुझे याद है कई साल पहले लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग में ऑटिज्म पर एक वर्कशॉप हुई थी. इस वर्कशॉप में फरुख शेख आए थे. उन्हें ऑटिज्म के बारे में अवेयर करने वाली एक एनजीओ अपने साथ लाई थी और उन्हें ब्रांड एम्बेस्डर के तौर पर पेश किया गया था. आज फारुख शेख कहां हैं किसी को नहीं पता. लेकिन टीवी पर आ रहे सीरियल आपकी अंतरा और तारे जमी पर फिल्म ने लोगों को जागरूक करने का काम किया है.
तारे जमीं पर की तर्ज पर एक फिल्म 2004 में आई थी 'फिर मिलेंगे.Ó अभिनेत्री रेवती ने यह फिल्म एचआईवी-एड््स को केंद्रित कर बनाई थी. एचआईवी-एड््स से संक्रमित व्यक्ति किस तरह की दुश्वारियों का सामना करता है. इस फिल्म में बखूबी दर्शाया गया था. एचआईवी संक्रमित युवती का रोल निभाया था शिल्पा शेट्टी ने. यह फिल्म भले ही हिट न कही जाए. लेकिन एचआईवी-एड्स संक्रमित लोग किस तरह के स्टिग्मा और डिस्क्रिमिनेशन का सामना कर रहे हैं. यह इस फिल्म को देखकर समझा जा सकता है.
कुछ और बीमारियों वाली फिल्में
ब्लैक -अमिताभ बच्चन एल्जाइमर डिजीज से पीडि़त
मजबूर- अमिताभ बच्चन को टर्मिनल ब्रेन ट्यूमर से पीडि़त दिखया गया
भूलभुलैया - विद्या बालन डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसआर्डर से पीडि़त थीं
स्माइल पिंकी- ऑस्कर विनिंग डॉक्यूमेंट्री, जिसमें क्लेफ्ट लिप पीडि़़त बच्ची की हंसी को दिखाया गया
तेरे नाम- सलमान खान मेमोरी लॉस से पीडि़त दिखाये गए